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धर्म बनता है





धर्म बनता है


नंगे , भूखे -प्यासे जन के ,

प्रति नित  अब संवेदन हो।

अन्न-वस्त्र से सदा मदद हो,

सहानुभूति निवेदन हो।

लोकतंत्र में भूखे प्राणी?

यह भी क्या कुछ बात हुई??

लोकतंत्र के रखवालों की,

लगता है अब रात हुई।

रोते बच्चे माँ रोती है,

रक्षक का कुछ पता नहीं।

प्रजातंत्र का यह मतलब है,

भूखी बस्ती अब सोती है।

बनता है यह धर्म नहीं क्या?

सत्ता में उजियारा हो।

प्रजापलकों से यह पूछो,

क्यों गरीब अँधियारा हो??






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2 Comments

Muskan khan

12-Dec-2022 07:47 PM

Wonderful

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Rajeev kumar jha

12-Dec-2022 03:44 AM

शानदार

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